ध्यान से संबंधित आसन | Five Asanas For Meditation In Hindi : ध्यान एक प्राचीन रूप है जो भारतीय समाज में हजारों सालों पहले विकसित हुआ था और उसके बाद से लगातार इसका अभ्यास किया जा रहा है।ध्यान एक मजबूत विधि के रूप में भी माना जाता है जो मन और शरीर को आराम देने में मदद करता है।
Meditation Relaxing Music
सुखासन (Easy Pose)
शाब्दिक अर्थ: सुख का अर्थ प्रसन्नता है। यह आसन पालथी मारकर बैठने की वजह से सुखासन कहलाता है । यद्यपि, जिस आसन में बैठने से सुख की अनुभूति हो, वह भी सुखासन कहलाता है परंतु प्राचीन समय से पालथी लगाकर बेठने वाले आसन को ही सुखासन माना जाता रहा है।
विधि : आराम से ज़मीन पर घुटने मोड़ते हुए पालथी मारकर वैठ जाएँ। (चित्र देख) हायों को गोद में या घुटनों पर रखें। मेरुदण्ड, ग्रीवा व सिर सीधे रखें।
ध्यान : समस्त चक्रों से निकलने वाली ऊर्जा की अनुभूति।
श्वासक्रम : प्राणायाम के साथ/अनुकूलतानुसार।
समय : यथासंभव।
दिशा : पूर्व या उत्तर (आध्यात्मिक लाभ हेतु) । ध्यान के लिए यह एक उत्कृष्ट आसन है।
लाभ:
- भोजन करते समय इस आसन का उपयोग हितकारी है।
- जो ध्यान के लिए पद्मासन लगाने में असमर्थ हैं वे इस आसन का उपयोग कर सकते हैं।
- पूजा-पाठ में यह आसन अधिकतर किया जाता है।
- यह आसन शारीरिक स्फूर्ति, मन की शांति और शरीर को निरोग रखने में लाभकारी है।
गुप्तासन(Hidden Pose)
शाब्दिक अर्थ : गुप्त अयात् छिपा हुआ।
विधि : सुखासन में बैठ जाएं। अपने बाएँ पैर की एड़ी को सीवनी नाड़ी पर लगाकर दवाएं और दाहिने पैर की अंगुलियों को बाएं पैर की जांघों एवं पिंडली के बीच फंसाएं। हाथों को ज्ञान-मुद्रा की स्थिति में लाकर घुटनों के ऊपर रखें।
ध्यान : मूलाधार से सहस्त्रार चक्र तक समस्त चक्रों का क्रमशः ध्यान करें।
श्वासक्रम : स्वाभाविक श्वास-प्रश्वास करें।
समय : निराकुल होकर जितना समय बैठ सकते हैं बैठे। दिशा : पूर्व या उत्तर (आध्यात्मिक लाभ हेतु)।
लाभ:
- तेज ऊर्ध्वमुखी होकर तेजस्वी बनाता है।
- नेत्र-ज्योति तीव्र होती है।
- काम-विकार,स्वप्नदोषका शमन होता है व ब्रह्मचर्य की शक्ति प्राप्त होती है।
- ध्यान करने से संपूर्ण शरीर के विकार क्रमशः नष्ट होते हैं।
- मानसिक तनाव दूर करता है।
मुक्तासन (FreePose/Meditation Pose/Liberation Pose)
विधि : बाएँ पैर की एड़ी को गुदामूल से स्पर्श कराकर उस पर दाहिने पैर की एड़ी को रखें। मेरुदण्ड, ग्रीवा तथा सिर एक सीध में रखते हुए बैठे। सभी सिद्धियों को देने वाला यह आसान मुक्तासन कहलाता है।
ध्यान : मूलाधार से उठती हुई ऊर्जा का ध्यान करें।
श्वासक्रम : स्वाभाविक श्वास-प्रश्वास करें।
समय : निराकुल होकर जितना समय बैठ सकते हैं बैठे। दिशा : पूर्व या उत्तर (आध्यात्मिक लाभ हेतु)।
लाभ:
- बल, बीर्य, ओज तेज ऊर्ध्वमुखी होकर तेजस्वी बनाता है।
- नेत्र-ज्योति तीव्र होती है।
- स्वप्नदोष, काम-विकार का शमन होता है व ब्रह्मचर्य की शक्ति प्राप्त होती है।
- सकारात्मक ध्यान करने से संपूर्ण शरीर के विकार क्रमशः नष्ट होते हैं।
- 72,000 नाड़ियों के मलों का शोधक है।
- मानसिक तनाव दूर करता है।
स्वास्तिकासन(Auspicious Pose)
शाब्दिक अर्थ : स्वास्तिक का शुभ चिह्न (सातिया।) सभी जानते हैं। यह चिह्न आध्यात्मिक व सांसारिक सुखों को देने वाला है।
विधि : सुखासन में बैठकर दोनों पादतल को दोनों जाधों के बीच स्थापित कर त्रिकोणाकार आसन लगाएं। मेरुदण्ड, ग्रीवा व सिर सीधा रखें। दृष्टि भूमध्य पर स्थिर करें।
हठयोग प्रदीपिका के अनुसार :
जानूवरन्तरे सम्यक् कृत्वा पादतले उभे । ऋजुकायः समासीनः स्वस्तिकं तत् प्रचक्षते।।
ध्यान : आत्म उत्थान के लिए क्रमशः समस्त चक्रों का।
श्वासक्रम : सामान्य रखें।
समय : परिस्थिति अनुसार।
दिशा : पूर्व या उत्तर (आध्यात्मिक लाभ हेतु) ।
मंत्रोच्चारण : ॐ का उच्चारण ध्वनि-रूप में करें।
लाभ :
- बल, बीर्य, ओज तेज ऊर्ध्वमुखी होकर तेजस्वी बनाता है।
- नेत्र-ज्योति तीव्र होती है।
- स्वप्नदोष, काम-विकार का शमन होता है व ब्रह्मचर्य की शक्ति प्राप्त होती है।
- सकारात्मक ध्यान करने से संपूर्ण शरीर के विकार क्रमशः नष्ट होते हैं।
- 72,000 नाड़ियों के मलों का शोधक है।
- मानसिक तनाव दूर करता है।
योगासन
उत्तानौ चरणौ कृत्वा संस्थाप्य जानुनोपरि। आसनोपरि संस्थाप्य उत्तानं करयुग्मकम् ।
पूरकैर्वायुमाकृष्य नासाग्रमवलोकयेत् । योगासनं भवेदेतद् योगिनां योगसाधनम् ।
अर्थ : सुखासन में बैठ जाएं अब दोनों पैरों को उठाकर दोनों जांघों के ऊपर स्थापित करके बाएं पैर को दाहिनी जॉब पर व दाहिने पैर को बायी जांघ पर रखें एवं दोनों हाथों को उत्तान भाव से आसन के ऊपर रखें। तब पूरक प्राणायाम द्वारा वायु को भीतर खींचकर नासिका के अग्रभाग पर द्रष्टि रखते हुए साधक कुंभक द्वारा वायु को रोके। योगियों को इसे प्रतिदिन अवश्य करना चाहिए। यही योगासन कहलाता है।
ध्यान : मूलाधार से सहयार तक क्रमशः ध्यान करें।
दिशा : पूर्व या उत्तर (आध्यात्मिक कारणों से)।
समय : अनुकूलतानुसार।
लाभ :
- मेरुदण्ड सीधा रहने से समस्त शरीर को लाभ मिलता है।
- पूर्ण पद्मासन लगाने से पहले इसका अभ्यास करना चाहिए।
- चेतना को ऊर्ध्वमुखी बनाता है।
- किसी भी इष्ट मंत्र का जाप श्वास-प्रश्वास पर ध्यान देते हुए करने से मन को स्थिरता प्रदान करता है।
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