सूर्य नमस्कार करने का सही तरीका, फायदे और सावधानियां
How to do Surya Namaskar With Step by Step in Hindi: सूर्य का महत्त्व समझाने के लिए हमारे धर्म ग्रंथों में अनादि काल से दर्श: होता आया है आज भी सूर्य एक रहस्य हे और क्रमशः खोत अही है। परंतु एक बात पक्की है कि यह हमें प्राचीन समय से अपनी ओर आकर्षित करता आया है।
हम पिछले युगों में जाएं या आज के युग की बात करें, पूर्व हो हमेशा जीवनदायिनी ऊर्जा देता आया है। सूर्य के बारे में जानने के लिए आज का वैज्ञानिक दिन-रात एक कर रहे हैं |
जबकि हमारे ऋषि मुनि इसकी दिया और उसका उपयोग करना भी जानते थे। सूर्य मात्र हमारे शरीर को ही नहीं, हमारे सूक्ष्म शरीर को भी अपनी चैतन्य शक्ति से जीवंतता प्रदान करता है । वैज्ञानिक इसे आग का गोला कहें अथवा कोई ग्रह परंतु प्राचीन काल में ही इसके अनेक रहस्यों को हमारे मनीषियों ने समझ लिया था और उसका उपयोग करने की कला को जन-कल्याण तक पहुंचाया था परंतु अब सूर्य का जान लुप्तप्राय है।
यहाँ पर हम थोड़ी सी चर्चा सूर्य के रहस्य को समझाने के लिए करना चाहते हैं, ताकि हम जब सूर्य नमस्कार करें तो हमारे मन में श्रद्धा, लगन और आरया प्रकट हो और हम उससे लाभान्वित हो सकें।
सूर्य नमस्कार का प्राचीन इतिहास
सूर्य नमस्कार करने का मुख्य कारण संभवतया उसके द्वारा जीवनदायिनी ऊर्जा मिलना और उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना रहा है। सूर्य में स्थापित अकृत्रिम प्रतिमा को या यूं कहें कि सूर्यदेव को अर्घ्य समर्पित करने का प्रचलन आदिकाल से रहा है, जब इस भरत-भूमि के प्रथम चक्रवर्ती राजा भरत सूर्य में स्थित जिनालयों को नमस्कार किया करते थे।
किन्हीं कारणों से इसका प्रचार-प्रसार अधिक नहीं हो पाया परंतु दक्षिण भारत के आचार्यों ने इसे आत्मसात् किया और इस विधा को जीवंत रखा। जब वे शेष भारत के ती्थों पर भ्रमण हेतु आते तो वहां भी नित्यकर्म में सूर्य नमस्कार करते थे तीर्थ स्थानों की जनता उन्हें देखकर सूर्य नमस्कार की विधि का अनुसरण करती थी। इस प्रकार पुनः संपूर्ण भारत वर्ष में सूर्य नमस्कार का प्रचार-प्रसार हुआ।
सूर्य नमस्कार
1. प्रार्थना मुद्रा/नमस्कारासन/प्रणामासन (Pranamasana – The Prayer Pose)
- विधि: प्रार्थना की मुद्रा में पंजों को मिलाकर पूर्व दिशा की तरफ सीधे खड़े हो जाएं। पूरे शरीर को शिथिल कर दें एवं आगे के अभ्यास के लिए तैयार रहे। (इसे नमस्कार मुद्रा भी कहते हैं।)
- श्वासक्रमः समान्य।
- ध्यान: अनाहत चक्र पर।
- मंत्र : ॐ मित्राय नम अर्थात हे विश्व के मित्र सूर्य, आपको नमस्कार।
- लाभ : रक्त संचार सामान्य करता है। एकाग्रता एवं शांति प्रदान करता है।
2.हस्त उत्तासन (Hasta Uttanasana – Raised Arms Pose)
- विधि : दोनों हाथों को ऊपर उठाएं। कंधों की चौड़ाई के बराबर दोनों भुजाओं की दूरी रखें। सिर और ऊपरी धड़ को यथासंभव पीछे झुकाएँ। परंतु भुजाबंध कान की सीध में रखें।
- श्वासक्रम : भुजाओं को ऊपर उठाते समय श्वास लें।
- मंत्र : ॐ रवये नमः अर्थात हे संसार में चहल-पहल लाने वाले सूर्यदेव, आपको नमस्कार ।
- ध्यान : विशुद्धि चक्र पर।
- लाभ : उदर की अतिरिक्त चर्वी को हटाता है। पाचन-तंत्र बेहतर बनाता है। फुफ्फुस पुष्ट होते हैं। भुजाओं और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
3.पादहस्तासन/हस्त पादासन (Padahastasana – Standing Forward Bend)
- विधि: सामने की तरफ झुकते हुए दोनों हाथों के पंजों कोरी के बगल में स्पर्श करते हुए रखें। मस्तक को घुटने से स्पर्श कराएं। पैरों को सीधा रखें।
- श्वासक्रम: सामने की तरफ झुकते हुए श्वास छोड़े एवं अधिक से अधिक श्वास बाहर निकालने के लिए अतिम स्थित में पेट को संकुचित करें ।
- ध्यान: स्वाधिष्ठान चक्र पर।
- मंत्र: ॐ सूर्याय नमः अर्थात हे संसार को जीवन देने वाले सूर्यदेव, आपको नमस्कार।
- लाभ: उदर की चर्षी कम करता है। पेट एवं अमाशय के दोषों को रोकता तथा नष्ट करता है। कब्ज नाशक है। मेरुदण्ड को लचीला बनाता है एवं उसके स्नायुओं के दबाव को सामान्य करता है। रक्त संचार तेज़ करता है।
4. अश्व संचालनासन/एक पाद प्रसारणासन (Ashwa Sanchalanasana – Equestrian Pose)
- विधि : अब बाएं पैर को जितना पीछे ले जा सकते हैं ले जाएं और बाएं घुटने एवं पाद पृष्ठ भाग को ज़मीन से स्पर्श कराएं। दाएँ पंजे को अपनी ही जगह पर दृढ़ रखते हुए घुटने को मोड़ें। भुजाएं अपने स्थान पर सीधी रहे। हाय के पंजे एवं दाएं पैर का पंजा एक सरल रेखा में ही रखें।……इस क्रिया में दोनों हाथ, बाएं पैर का पादपृष्ठ, घुटना एवं दाएं पैर के ऊपर शरीर का वज़न स्थित रहेगा। अब सिर पीछे की तरफ उठाएँ। दृष्टि सामने ऊपर की तरफ़ और शरीर को धनुषाकार बनाएँ।
- श्वासक्रम : बाएं पैर को पीछे ले जाते समय श्वास लें।
- ध्यान: आज्ञा चक्र पर।
- मंत्र: ॐ भानवे नमः अर्थात हे प्रकाशपुंज, आपको नमस्कार हो ।
- लाभ : मेरुदण्ड में लोच पैदा होती है। उदर प्रदेश के हल्के तनाव के कारण पाचन तंत्र में रक्त संचार बढ़ाता है, इससे पाचन-तंत्र सुचारु रूप से कार्य करता है।
5. पर्वतासन/भूधरासन (Adho Mukha Svanasana – Downward-facing Dog Pose)
- विधि : शरीर का वजन दोनों हाथों पर स्थिर करते हुए, द पैर को सीधा करके पंजे को चार पंजे के पास रखें। अब नितयों को अधिकतम ऊपर की तरफ उठा एवं सिर को दोनों भुजाओं के बीच लाएँ। एड़ियाँ जमीन से ऊपर न उठे और घुटनों की तरफ देखने हुए पैर और भुजाएँ एक सीध में रखें। श्वासक्रम : दाएं पैर को पीछे लाते समय एवं नितंबों को उठाते समय श्वास छोड़े।
- ध्यान : विशुद्धि चक्र पर।
- मंत्र : ॐ खगाय नमः अर्थात है आकाश में गति करने वाले देव, आपकी नमस्कार।
- लाभ : सिर सामने की तरफ झुका होने के कारण रक्त संचार बढ़ जाता है। इससे चेहरे पर ताजगी होने के साथ ही आँखों की रोशनी व वालों का झड़ना रुकता है। भुजाओं और पैरों का व्यायाम होता है। मेरुदण्ड के स्नायुओं को लाभ होता है। इससे लचीलापन बढ़ता है और मेरुदण्ड सशक्त होता है।
6. अष्टांग नमस्कारासन/प्रणिपातासन (Ashtanga Namaskara – Eight Limbed pose or Caterpillar pose)
विधि : पुटने मोड़ते हुए शरीर को जमीन की तरफ़ इस प्रकार से झुकाएँ कि दोनों पाद पृष्ठ, दोनों घुटने, छाती, दोनों हाथों के पंजे एवं ठुडडी ज़मीन का स्पर्श करें। नितंब व उदर प्रदेश ज़मीन से थोड़े ऊपर उठे रहें।
श्वासक्रम : श्वास को रोककर रखें।
ध्यान : मणिपूरक चक्र पर।
मंत्र: ॐ पूष्णे नमः अर्थात हे संसार के पोषक, आपको नमस्कार।
लाभ : छाती और फेफड़ों को शक्ति देता है। पैरों और हाथों की मासपेशियों को मजबूती देता है।
7. भुजंगासन (Bhujangasana – Cobra Pose)
- विधि: हाथों को सीधा करें। शरीर के अगले हिस्से सिर, छाती और कमर भाग को ऊपर उठाते हुए सिर तया गर्दन को पीछे की तरफ झुकाएं। शवासक्रम : उदर प्रदेश एवं छाती को धनुषाकार बनाकर ऊपर उठाते समय श्वास लें। ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर।
- मंत्र : ॐ हिरण्यगर्भाय नमः अर्थात है ज्योतिर्मय आपको नमस्कार।
- लाभ: पाचनतंत्र में तनाव उत्पन्न कर रक्त संचार बढ़ाता है। अतः पाचन किया को क्रियाशील करता है। कब्ज हटाता है। फेफड़ों को सुचारू करता है। मेरुदण्ड को लचीला बनाता है। दमा, ब्रोंकाइटिस, सरवाइकल स्पोरटेलाइटिस, स्लिप डिस्क रोगियों के लिए लाभकारी।
8. पर्वतासन/भूधरासन (Adho Mukha Svanasana – Downward-facing Dog Pose)
- विधि : यह स्थिति 5 की ही पुनरावृत्ति है। शरीर के नितंद वाले भाग को ऊपर उठाते हुए पैरों के पंजों को जमीन पर स्थापित करें शरीर की अंतिम स्थिति में कमर तथा नितंब अधिक से अधिक ऊपर हों। पैरों के पंजे आपस में मिले हुए हों। दृष्टि नाभि की तरफ़ रखें।
- श्वासक्रम : नितंव व धड़ को ऊपर उठाते समय श्वास छोड़ें।
- ध्यान : विशुद्धि चक्र पर।
- मंत्र : ॐ मरीचये नमः अर्थात हे किरणों के स्वामी, आपको नमस्कार।
- लाभ : हाथ एवं पैरों के स्नायुओं एवं मांसपेशियों को नई ऊर्जा प्रदान करता है। मेरुदण्ड को लचीला बनाता है। इससे स्थिति 5 के सभी लाभ प्राप्त होते हैं। इसको अधोमुख श्वानासन भी कहते है।
9. अश्व-संचालनासन/एक पाद प्रसारणासन (Ashwa Sanchalanasana – Equestrian Pose)
- विशेष : स्थिति में वाया पैर पीछे जाता है, जबकि इस स्थिति में दायाँ पैर पीछे रहता है।
विधि : बायाँ पैर सामने दोनों हथेलियों के बीच में रखें। इसी के साथ बाएं पैर को मोड़ें और पंजे को वहीं स्थिर रहने दें। दाएं पैर को यथासंभव पीछे की ओर खींचें। ध्यान रखें कि पाद पृष्ठ भाग और घुटना जमीन से स्पर्श करता रहे। भुजाएँ सीधी रखें। इस स्थिति में शरीर का भार दोनों हाय, वाएँ पैर का पंजा, पाद पृष्ठ और दाहिने घुटने पर होगा। - श्वासक्रम : बाएं पैर को आगे ले जाते समय श्वास लें।
- ध्यान : आज्ञा चक्र पर। मंत्र : ॐ आदित्याय नमः अर्थात हे संसार के आपको नमस्कार।
- लाभ : मेरुदण्ड में लोच पैदा होती है। उदर प्रदेश के हल्के तनाव के कारण पाचन तंत्र में रक्त संचार बढ़ाता है, इससे पाचन-तंत्र सुचारु रूप से कार्य करता है।
10. पादहस्तासन/हस्त पादासन (Padahastasana – Hand Under Foot Pose)
- विशेष : यह स्थिति क्रमांक 3 की पुनरावृत्ति है। विधि : दोनों हाथों पर भार डालते हुए दाएं पैर के पंजे को वाएं पैर के पंजे के समकक्ष स्थापित करें। पैरों को सीधा करें। मस्तक को घुटने से स्पर्श कराएं। इस प्रकार अंतिम स्थिति में पैरों के पंजे और हाथों के पंजे एक सीध में रहेंगे।
- श्वासक्रम : सामने की ओर झुकते समय श्वास छोड़े। अधिक से अधिक श्वास बाहर निकालने के लिए उदर प्रदेश को संकुचित करें।
- मंत्र : ॐ सवित्रे नमः अर्थात हे विश्व को उत्पन्न करने वाले, आपको नमस्कार।
- ध्यान : स्वाधिष्ठान चक्र पर।
- लाभ :उदर की चर्षी कम करता है। पेट एवं अमाशय के दोषों को रोकता तथा नष्ट करता है। कब्ज नाशक है। मेरुदण्ड को लचीला बनाता है एवं उसके स्नायुओं के दबाव को सामान्य करता है। रक्त संचार तेज़ करता है।
11. हस्त उत्तानासन (Hasta Uttanasana – Raised Arms Pose)
- विधि : झुके हुए शरीर को ऊपर उठाएँ एवं दोनों हाथों को सिर के ऊपर ले जाएँ। कंधों की चौड़ाई के बरावर दोनों भुजाओं की दूरी रखें। सिर एवं ऊपरी धड़ को यथासंभव पीछे झुकाएँ।
- श्वासक्रमः हाथों को उठाते समय श्वास लें।
- ध्यान : विशुद्धि चक्र पर।
- मंत्र : ॐ अर्काय नमः अर्थात हे पवित्रता को देने आले. आपको नमस्कार।
- लाभ: उदर की अतिरिक्त चर्वी को हटाता है। पाचन-तंत्र बेहतर बनाता है। फुफ्फुस पुष्ट होते हैं। भुजाओं और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
12. प्रार्थना मुद्रा/प्रणामासन/नमस्कारासन (Pranamasana – The Prayer Pose)
- विधि : ऊपर उठे हुए हाथों को प्रार्थना की मुद्रा में पंजों को मिलाकर सीधे खड़े हो जाएं। पूरे शरीर को शिथिल कर दें।
- श्वास क्रम: श्वास छोड़कर सामान्य श्वास-प्रश्वास करें।
- ध्यान: अनाहत चक्र पर।
- मंत्र : ॐ भास्कराय नमः अर्थात हे प्रकाश करने वाले, आपको नमस्कार।
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क्या हैं सूर्य नमस्कार के फायदे? (Health Benefits of Surya Namaskar)
- यह प्राण शक्ति प्रदाता है।
- इसमें शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर ऊर्जा संतुलित होती है।
- सूर्य नमस्कार के अभ्यास से सारे शरीर का व्यायाम हो जाता है।
- मेरुदण्ड के वारी वारी से आगे तथा पीछे मुड़ने के कारण शारीरिक लाभ के साथ-साथ कुण्डलिनी जागरण में भी इसका अधिक महत्त्व है।
- चूंकि सुषुम्ना का मार्ग मेरुदण्ड ही है, अतः ऊर्जा ऊर्ध्वमुखी भी होती है।
- सूर्य नमस्कार मानसिक शांति देता है। स्मरण शक्ति बढ़ाता है।
- वीर्य व तेज की वृद्धि करता है। कब्ज का दुश्मन है। बुढ़ापे को पास नहीं आने देता।
- स्त्रियों अपने शरीर को आकर्षक, सुंदर व सुडौल बना सकती हैं।
- सूर्य नमस्कार समस्त बीमारियों का नाश करता है। सूर्य के समान तेजवान बनाता है।
- विद्यार्थी सूर्य नमस्कार को कर इनसे होने वाले लाभों को अवश्य प्राप्त करें।
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